Tuesday, June 30, 2015

मानसून के बारे में रोचक जानकारी एव आम लोगों के अवधारणा

मई और जून में जब सूर्य अपनी तपिश से समस्‍त भारतीय उपमहाद्वीप को प्रभावित करता है तब चारों तरफ पानी के लिए हाहाकार सा मच जाता है। उस समय सारे देश में एक महत्‍वपूर्ण मौसमी घटना (मानसून) का इंतजार किया जाता है। मानसून का अर्थ, देश के लोगों के लिए अलग-अलग होता है, जहां शहरी जनता के लिए इसका तात्‍पर्य जून मास की तेज गर्मी व पेयजल की कमी से मुक्‍ति है वहीं गांवों के अन्‍नोत्‍पादक किसानों हेतु फसलों के लिए जीवनदायनी है।
मानसून :
मानसून नम हवाओं का प्रवाह है, जो वातावरण को 5 या 5 से ज्यादा किलोमीटर तह नम हवाओं से भर देती है। मुख्यत: हवाओं की दिशा वर्ष के 6 माह में उत्‍तर-पूर्व तथा शेष 6 माह में दक्षिणी पश्‍चिमी दिशा में होती है। भारत में मानसून दक्षिण-पश्‍चिम दिशा से आने के कारण इसे दक्षिण-पश्‍चिम मानसून भी कहा जाता है। मानसून आगमन से बर्षा होते रहने के कारण, प्राय: मानसून का मतलब लोग बर्षा से लगाते है, परंतु मानसून के दौरान (100 दिनों) में हमेशा बारिश हो ऎसा नहीं होता है। मानसून तो मात्र नम हवाओं का एक प्रवाह है।
मानसून का स्‍वरूप
            मानसून का स्‍वरूप दो तरह का होता है- (क) सत्‍य मानसून  (ख) छद्‌म मानसून
            हवाओं की दिशा वर्ष के एक भाग से दूसरे भाग में जहां पूर्णतः पलट जाती हो वहीं सत्‍य मानसून होता है और इसका यह स्‍वरूप दक्षिण-पूर्व एशिया में ही पाया जाता है। छद्‌म मानसून उन स्‍थानों में पाया जाता है जहां पर वर्षा कराने वाली हवाओं की  दिशा वर्ष के एक भाग से दूसरे भाग में पूर्णरूपेण नहीं बदलती है। मानसून का ऐसा स्‍वरूप पश्‍चिमी अफ्रीका, पूर्वी अफ्रीका, मेडागास्‍कर, उत्‍तरी आस्‍टे्रेलिया, पूर्वी तथा दक्षिणी पूर्व संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका और यूरोप में होता है। दक्षिणी पूर्व एशिया में भी मात्र भारतीय उप-महाद्वीप में ही मानसून का उत्‍कृष्‍ट(सत्य स्वरूप) उदाहरण मिलता है।
भारत में वर्ष में दो प्रकार की मानसून धाराएं बहती हैं। जिससे यहां दो भिन्‍न प्रकार के मानसून पाये जाते हैं।
1-        ग्रीष्‍म या दक्षिणी पश्‍चिमी मानसून
2-        शीत या पूर्वोत्‍तर मानसून।
मानसून की स्‍थिति:
मानसून की स्‍थिति दो प्रकार की होती है:- सक्रिय मानसून व मानसून भंग
सक्रिय मानसून :
मानसून धाराएं जब वेगवती होती हैं तो प्रायद्वीप के दक्षिण-पूर्व भाग एवं हिमालय के तराई क्षेत्रों को छोड़कर पूरे देश में पर्याप्‍त वर्षा होती है, इस स्‍थिति को सक्रिय मानसून की स्‍थिति कहते हैं।
मानसून भंग:
मानसून धाराएं जब क्षीण हो जाती हैं तो दक्षिणी प्रायद्वीप के दक्षिणी-पूर्वी भाग एवं तराई के क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा (मानसून अक्ष के उत्‍तरी दिशा की ओर अग्रसर होने से) बढ़ जाती है तथा देश के शेष भागों में वर्षा कम हो जाती है या रूक सी जाती है। इसी स्‍थिति को मानसून भंग की स्‍थिति कहते हैं। मानसून भंग की अवधि अनिश्‍चित रहती है जो 3 से 21 दिनों की हो सकती है। यह पाया गया है कि अगस्‍त एवं सितम्‍बर माह में मानसून भंग की अवधि जुलाई माह की अपेक्षा अधिक(7 दिनों से लेकर 21 दिनों तह) होती है। जुलाई माह में साधारणतया मानसून भंग की अवधि 2 से 6 दिनों की होती है। जिस वर्ष में मानसून आगमन के तुरन्‍त बाद यह स्‍थिति उत्‍पन्‍न होती है उस बर्ष खरीफ फसलों के बुआई पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। जब यह स्‍थिति 15 दिनों से लगातार से अधिक की होती है, तो कृषि को अत्याधिक प्रभावित करती है।

अन्‍ततः मानसून का आगमन प्रकृति की एक सुखद घटना है जो भिन्‍न-भिन्‍न भागों में गर्मी से परेशान जीव जगत को तापमान में कमी लागकर सुहाना मौसम प्रदान करता है, साथ ही जीवनदायक जल की प्राप्‍ति होती है। किसानों के लिए तो इसका आगमन एक उत्‍सव से कम महत्‍वपूर्ण नहीं है। प्‍यासी धरती की प्‍यास बुझाकर, पूरे देश में नव-जीवन की शक्‍ति प्रदान करने वाले इस मानसून के लिए यह कहना अतिश्‍योक्‍ति नहीं होगी कि मानसून तेरे बिना है, सब सून।

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