Wednesday, January 25, 2023

मानसून आगमन के बदलते स्वरुप का तिलहनी फसलों के उपज पर प्रभाव

 

बुन्देलखण्ड़ कृषि जलवायु क्षेत्र में मानसून आगमन के बदलते स्वरुप का तिलहनी फसलों के उपज पर प्रभाव

   विगत 30 वर्षों (1987- 2016) तक के टीकमग़ढ़ जिले में मानसून आगमन, वर्षा तथा तीन प्रमुख तिलहनी फसलों (सोयाबीन, मूंगफली तथा तिल) के उपज का विश्लेषण किया गया है। मानसून आगमन को तीन भागों (जल्दी –13 जुन से पहले, समय से –13 से 25 जुन व विलम्ब से –25जुन के बाद) में विभाजित करने बाद उन वर्षों के अनुसार उपज के आकडों का औसत निकालने पर यह पाया गया कि, बुन्देलखण्ड़ कृषि जलवायु क्षेत्र के किसान समय पर मानसून आगमन का लाभ नहीं उठा पाते है, जिसका प्रभाव उनके द्वारा प्राप्त होने वाली उपज में परिलक्षित होता है। जबकि इस क्षेत्र में मानसून का आगमन 47 प्रतिशत वर्षों में समय से होता पाया गया है। तिलहनी फसलों के औसत उपज को मानसून आगमन के साथ विश्लेषण करने पर पाया गया कि मानसून आगमन का प्रभाव सबसे अधिक तिल की उपज (58 प्रतिशत) तथा सबसे कम मूंगफली की उपज (10 प्रतिशत) में बदलाव के लिए उत्तरदायी होता है। मानसून आगमन होने तथा तिलहनी फसलों के औसत उपज इस प्रकार पाये गए कि मूंगफली की उपज समय से आगमन होने पर 1073, देर से होने पर 1183 एवं जल्दी होने पर 1089 कि./हे. रही। वहीं सोयाबीन की उपज समय से आगमन होने पर 892, देर से होने पर 1144 एवं जल्दी से होने पर 989 कि./हे. रही, जबकि तिल की उपज समय से आगमन होने पर 737, देर से होने पर 569 एवं जल्दी से होने पर 465 कि./हे. रही। मात्र तिल की उपज का समय पर मानसून आगमन होने के साथ संबंध देखा गया, इसका पता लगाने के लिए सितम्बर माह में हुई औसत वर्षा का मानसून आगमन के साथ गणना करने पर देखा गया कि समय से मानसून आगमन होने पर इस माह में जहाँ 98 मिलीमीटर, वही देरी से आगमन होने पर 182 तथा जल्दी आगमन होने पर 126 मिलीमीटर वर्षा प्राप्त होती है। सितम्बर माह में अपेक्षाकृत कम वर्षा तिल के लाभदायक है, परंतु सोयाबीन के लिए नहीं है।

      इस क्षेत्र में जल्दी से मानसून का आगमन मात्र 3 प्रतिशत वर्षों में तथा देरी से 50 प्रतिशत वर्षों में होता है। प्राय़ः मानसून आगमन का खरीफ के दौरान प्राप्त होने वाली वर्षा के मात्रा से नहीं होता है, फिर भी विश्लेषण से ऎसा देखा गया कि सबसे अधिक वर्षा (1363 से 1511 मिलीमीटर) समय से आने पर प्राप्त हुआ है। परन्तु कम वर्षा (521 से 599 मिलीमीटर) मात्र 15 प्रतिशत वर्षों में ही मानसून का आगमन समय से होने पर भी प्राप्त हुआ है तथा सबसे कम वर्षा (271 मिलीमीटर) वर्ष 2007 में प्राप्त हुआ है। इसी प्रकार खरीफ (जुन से सितम्बर) में समय पर मानसून आगमन से औसत वर्षा 843, देर से आगमन होने पर 761 तथा जल्दी आगमन होने पर 1448 मिलीमीटर प्राप्त हुई। समय पर मानसून आगमन का लाभ किसान इसलिए नहीं ले पा रहे है कि वे फसल बुआई के लिए भुमि में वर्षा से प्राप्त होनेवाले भरपुर नमी का इंतजार करते है, जिसका फायदा उन्हें देर से मानसून आगमन पर तो होता दिखाई दे रहा है, परंतु समय पर मानसून आगमन होने पर उनका यह प्रयास फायदेमन्द होता परिलक्षित नहीं पाया गया है। अतः किसान को मानसून आगमन के इस बदलते समय के साथ साथ फसल बुआई के तकनीकि में भी बदलाव तथा इंतजार के बदले तत्परता दिखाना पड़ेगा, ताकि वे समय पर मानसून आगमन का लाभ ले कर तिलहनी फसलों के उपज में वृद्धि कर पाएंगे।  

वर्ष

मानसून आगमन की तिथि

जुन से सितम्बर में हुई कुल वर्षा (मि.मी.)

1986

20-Jun

565.8

1987

6-Jul

964.7

1988

26-Jun

724

1989

18-Jun

676.4

1990

20-Jun

1363.3

1991

21-Jun

738.2

1992

1-Jul

842.4

1993

3-Jul

895.4

1994

24-Jun

1119.4

1995

27-Jun

679.4

1996

23-Jun

1120.6

1997

28-Jun

703

1998

16-Jun

521

1999

23-Jun

524

2000

23-Jun

524

2001

26-Jun

696

2002

20-Jun

780.9

2003

27-Jun

967

2004

16-Jun

773

2005

30-Jun

839

2006

28-Jun

730.6

2007

1-Jul

271

2008

12-Jun

1386

2009

25-Jun

599

2010

2-Jul

568.3

2011

20-Jun

1511.1

2012

7-Jul

1015.5

2013

15-Jun

1372.2

2014

19-Jun

598.9

2015

23-Jun

490.6

2016

20-Jun

885.9

2017

26-Jun

594.1

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