Sunday, May 31, 2015

बुन्देलखण्ड़ कृषि जलवायु क्षेत्र में मानसून आगमन के बदलते स्वरुप का तिलहनी फसलों के उपज पर प्रभाव

विगत 26 वर्षों (1987- 2012) तक के टीकमग़ढ़ जिले में मानसून आगमन, वर्षा तथा तीन प्रमुख तिलहनी फसलों (सोयाबीन, मूंगफली तथा तिल) के उपज का विश्लेषण किया गया है। मानसून आगमन को तीन भागों (जल्दी –13 जुन से पहले, समय से –13 से 25 जुन व विलम्ब से –25जुन के बाद) में विभाजित करने बाद उन वर्षों के अनुसार उपज के आकडों का औसत निकालने पर यह पाया गया कि, बुन्देलखण्ड़ कृषि जलवायु क्षेत्र के किसान समय पर मानसून आगमन का लाभ नहीं उठा पाते है, जिसका प्रभाव उनके द्वारा प्राप्त होने वाली उपज में परिलक्षित होता है। जबकि इस क्षेत्र में मानसून का आगमन 47 प्रतिशत वर्षों में समय से होता पाया गया है। तिलहनी फसलों के औसत उपज को मानसून आगमन के साथ विश्लेषण करने पर पाया गया कि मानसून आगमन का प्रभाव सबसे अधिक तिल की उपज (58 प्रतिशत) तथा सबसे कम मूंगफली की उपज (10 प्रतिशत) में बदलाव के लिए उत्तरदायी होता है। मानसून आगमन होने तथा तिलहनी फसलों के औसत उपज इस प्रकार पाये गए कि मूंगफली की उपज समय से आगमन होने पर 1073, देर से होने पर 1183 एवं जल्दी होने पर 1089 कि./हे. रही। वहीं सोयाबीन की उपज समय से आगमन होने पर 892, देर से होने पर 1144 एवं जल्दी से होने पर 989 कि./हे. रही, जबकि तिल की उपज समय से आगमन होने पर 737, देर से होने पर 569 एवं जल्दी से होने पर 465 कि./हे. रही। मात्र तिल की उपज का समय पर मानसून आगमन होने के साथ संबंध देखा गया, इसका पता लगाने के लिए सितम्बर माह में हुई औसत वर्षा का मानसून आगमन के साथ गणना करने पर देखा गया कि समय से मानसून आगमन होने पर इस माह में जहाँ 98 मिलीमीटर, वही देरी से आगमन होने पर 182 तथा जल्दी आगमन होने पर 126 मिलीमीटर वर्षा प्राप्त होती है। सितम्बर माह में अपेक्षाकृत कम वर्षा तिल के लाभदायक है, परंतु सोयाबीन के लिए नहीं है। 

No comments:

Post a Comment