Sunday, May 31, 2015

प्राकृतिक आपदा- सूखा

सूखा

मुख्‍य मानसून के होने अथवा अपर्याप्‍त होने की स्थिति को 'सूखा' पड़ना कहा जाता है। अपर्याप्‍त सिंचाई के कारण यह फसल के होने, पेय जल की कमी और ग्रामीण तथा शहरी समुदाय के लिए अकारण कष्‍ट में परिणामित होता है। भारत सरकार द्वारा सूखे की घोषणा करने का कोई प्रावधान नहीं है। राज्‍य सरकारों द्वारा प्रत्‍येक राज्‍य अथवा राज्‍य के किसी एक भाग के लिए सूखा घोषित किया जाता है। भारत में सूखे को नियंत्रित करने और स्थिति को संभालने के लिए किए जाने वाले मुख्‍य उपाय निम्‍नानुसार हैं:

  • निगरानी और शीघ्र चेतावनी: भारतीय मौसम विज्ञान विभाग सूखा संबंधी निगरानी और का कार्य करता है। कृषि विभाग ऐसी आपातकालीन योजनाएं तैयार करता है जो किसानों को सूखा जैसी स्थिति उत्पन् होने की स्थिति में उनकी फसलों को बचाने में सहायता करती हैं। 
  • सूखे की घोषणा: राज् मंडल अथवा तहसील के स्तर पर वर्षा की निगरानी करते हैं और दूरस् संवेदी अभिकरणों से सूचना एकत्र करते हैं। यदि सूचना से यह प्रमाणित होता है कि सूखा पड़ा है तो राज् सरकार सूखे की स्थिति की घोषणा कर सकती है। फिर केन्द्र सरकार सूखे से प्रभावित लोगों को राहत देने करने के लिए वित्तीय और संस्थागत प्रक्रियाओं को सहायता प्रदान करती है।
  • सूखे के प्रभावों की निगरानी और प्रबंधन: केन्द्र सरकार वित्त आयोग द्वारा तैयार किए गए सहायता मानदण्डों के अनुसार वित्तीय सहायता प्रदान करता है। राज्यों को सहायता आपदा राहत कोष के रूप में दी जाती है, जो राज्यों को दो किश्तों में निर्मुक् की जाती है, एक मई में और दूसरी अक्तूबर में।

बुन्देलखण्ड़ कृषि जलवायु क्षेत्र में मानसून आगमन के बदलते स्वरुप का तिलहनी फसलों के उपज पर प्रभाव

विगत 26 वर्षों (1987- 2012) तक के टीकमग़ढ़ जिले में मानसून आगमन, वर्षा तथा तीन प्रमुख तिलहनी फसलों (सोयाबीन, मूंगफली तथा तिल) के उपज का विश्लेषण किया गया है। मानसून आगमन को तीन भागों (जल्दी –13 जुन से पहले, समय से –13 से 25 जुन व विलम्ब से –25जुन के बाद) में विभाजित करने बाद उन वर्षों के अनुसार उपज के आकडों का औसत निकालने पर यह पाया गया कि, बुन्देलखण्ड़ कृषि जलवायु क्षेत्र के किसान समय पर मानसून आगमन का लाभ नहीं उठा पाते है, जिसका प्रभाव उनके द्वारा प्राप्त होने वाली उपज में परिलक्षित होता है। जबकि इस क्षेत्र में मानसून का आगमन 47 प्रतिशत वर्षों में समय से होता पाया गया है। तिलहनी फसलों के औसत उपज को मानसून आगमन के साथ विश्लेषण करने पर पाया गया कि मानसून आगमन का प्रभाव सबसे अधिक तिल की उपज (58 प्रतिशत) तथा सबसे कम मूंगफली की उपज (10 प्रतिशत) में बदलाव के लिए उत्तरदायी होता है। मानसून आगमन होने तथा तिलहनी फसलों के औसत उपज इस प्रकार पाये गए कि मूंगफली की उपज समय से आगमन होने पर 1073, देर से होने पर 1183 एवं जल्दी होने पर 1089 कि./हे. रही। वहीं सोयाबीन की उपज समय से आगमन होने पर 892, देर से होने पर 1144 एवं जल्दी से होने पर 989 कि./हे. रही, जबकि तिल की उपज समय से आगमन होने पर 737, देर से होने पर 569 एवं जल्दी से होने पर 465 कि./हे. रही। मात्र तिल की उपज का समय पर मानसून आगमन होने के साथ संबंध देखा गया, इसका पता लगाने के लिए सितम्बर माह में हुई औसत वर्षा का मानसून आगमन के साथ गणना करने पर देखा गया कि समय से मानसून आगमन होने पर इस माह में जहाँ 98 मिलीमीटर, वही देरी से आगमन होने पर 182 तथा जल्दी आगमन होने पर 126 मिलीमीटर वर्षा प्राप्त होती है। सितम्बर माह में अपेक्षाकृत कम वर्षा तिल के लाभदायक है, परंतु सोयाबीन के लिए नहीं है। 

June rainfall forecast in Bundelkhand by IMD

Based on 11 GCM output and these output integrated with statistical tool to arrive the Deterministic Precipitation Forecast (percentage departure) for June (lead 1)- 2015


This forecast indicates that June rainfall in EAST MP will be 30 per cent below their normal June rainfall. 

Friday, May 29, 2015

IMD MME forecast for June rainfall in East M.P.

IMD has given the extended rainfall forecast of June for East MP .

Monsoon progress is likely to be slow.

The forecast indicates that there will rainfall deficit by 54 percent (-54% less than Normal rain).

Hence, keep watch on the progress of monsoon and MRWF issued on 12 and 16 June, 2015.

Wait for two spell of the monsoon rainfall and MRWF forecast and accordingly start the kharif  crop sowing in the BUNDELKHAND  region.


Collect medium duration cultivars of pulse and oil seed for sowing.

Wednesday, May 27, 2015

द्लहनी तथा तिलहनी फसलों की बुआई

बुन्देखंड़ में खरीफ फलों की बुआई करने में किसान इंतजार व निगरानी की मुद्रा में रह्ता है, जिससे उसे मानसून के बर्षा का भरपुर उपयोग नहीं कर पाता है, वह् मानसून के आगाज होने पर भी वह तीन से चार वर्षा होने का इंतजार करता है, जिसके कारण उसे शुष्क मौसम होने पर नुकसान उठाना पड़्ता है।
अत: किसान भाई इस खरीफ में इन फसलों की बुआई 70 मिलीमीटर बर्षा दो या तीन स्पेल में होने पर ही पुरी करें। इस बार ये मौका उन्हें 15 से 30 जुन में मिलने की संभावना है। पहले स्पेल की मानसोन की बर्षा 16-21 जुन तथा दुसरे स्पेल की बर्षा 24-30 जुन में मिलने की संभावना है।

बुन्देलखण्ड़ में खरीफ फसलों की बुआई तथा मांसून का आगाज

मौसम की तपिस से बेचैन लोगों तथा पशुओं को राहत शायद 15 जुन के बाद  ही मिल पायेगा, जब मानसून का आगाज बुन्देल्खण्ड़ में होगा